दो सपने, एक राह

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दो सपने, एक राह


उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के एक छोटे से गाँव हरपुरा में एक साधारण किसान परिवार में जन्मा अर्जुन बचपन से ही कुछ अलग करने का सपना देखा करता था। वहीं, उसी गाँव में रहने वाली साक्षी, एक शिक्षक की बेटी थी, जिसकी आँखों में भी बड़े सपने पलते थे। दोनों की दोस्ती बचपन से ही थी — खेतों में खेलते हुए, मेले घूमते हुए, और स्कूल जाते समय एक-दूसरे को तंग करते हुए।

अर्जुन के पिता चाहते थे कि वह खेतों की देखभाल करे, लेकिन अर्जुन की रूचि किताबों में थी। उसे गणित और विज्ञान से बेहद लगाव था। वहीं साक्षी को अंग्रेजी भाषा बहुत पसंद थी। वह घंटों नॉवेल्स पढ़ती और इंग्लिश न्यूज़ सुनने की कोशिश करती।

बारहवीं के बाद अर्जुन ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में इंजीनियरिंग की तैयारी शुरू की, और साक्षी ने लखनऊ यूनिवर्सिटी में अंग्रेजी साहित्य। दोनों की पढ़ाई अलग-अलग शहरों में होने लगी, लेकिन दिलों की दूरी नहीं बढ़ी। फोन पर बातें होती रहतीं, त्यौहारों पर दोनों गाँव आते तो घंटों साथ बैठकर भविष्य की बातें करते।

साक्षी अक्सर कहा करती, “अर्जुन, एक दिन हम अमेरिका जाएंगे।”

अर्जुन हँसता, “किसी दिन… लेकिन कैसे?”

साक्षी कहती, “सपनों के लिए रास्ते खुद बनते हैं।”

सपनों की ओर पहला कदम

पढ़ाई पूरी करने के बाद अर्जुन ने GATE क्लियर किया और एक बड़ी MNC में नौकरी मिल गई। उधर साक्षी ने भी TOEFL और GRE की तैयारी शुरू कर दी। अर्जुन ने भी GRE देने का निश्चय किया, ताकि वह अमेरिका जाकर मास्टर्स कर सके। दो साल की मेहनत के बाद, दोनों का एडमिशन अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया में हो गया — साक्षी को English Literature में और अर्जुन को Computer Science में।

नई ज़मीन, नए अनुभव

2022 में दोनों अमेरिका पहुँचे। नई जगह, नया माहौल, और नई चुनौतियाँ। शुरुआत में भाषा और संस्कृति की दिक्कतें आईं, लेकिन दोनों ने मिलकर सब पार किया। हॉस्टल में अलग-अलग रहना पड़ता था लेकिन हर वीकेंड साथ घूमना, भारतीय रेस्तरां ढूंढना और वीडियो कॉल पर परिवार से बात करना उनकी दिनचर्या बन गई।

अर्जुन क्लास में सबसे तेज़ था, और जल्द ही एक रिसर्च प्रोजेक्ट में शामिल हो गया। साक्षी ने एक स्थानीय लाइब्रेरी में पार्ट-टाइम काम करना शुरू किया। उसने भारत की कहानियों और कविता पर कई ब्लॉग लिखने शुरू कर दिए, जो धीरे-धीरे वायरल होने लगे।

संघर्ष और पहचान

अर्जुन का एक सपना था कि वह एक ऐसा स्टार्टअप बनाए जो भारत के गाँवों के लिए टेक्नोलॉजी सुलभ बना सके। वहीं, साक्षी भारतीय संस्कृति और साहित्य को विश्व मंच पर लाना चाहती थी।

एक दिन अर्जुन को Google की तरफ़ से ऑफर आया लेकिन उसने ठुकरा दिया। उसने कहा, “मुझे कुछ अपना करना है, जो मेरे गाँव, मेरे देश के काम आए।”

साक्षी ने भी उसे पूरा समर्थन दिया। दोनों ने मिलकर एक एजुकेशन ऐप बनाया — "ज्ञानदीप" — जिसमें ग्रामीण छात्रों के लिए हिंदी और इंग्लिश दोनों में ट्यूटोरियल्स होते थे।

धीरे-धीरे ऐप की लोकप्रियता बढ़ने लगी, और भारत सरकार ने भी इस पहल की सराहना की।

प्रेम की कुबूलियत

एक शाम, कैलिफोर्निया के एक समुद्र किनारे, सूर्यास्त के समय अर्जुन ने साक्षी से कहा, “जब हम गाँव में थे, तब मैंने कभी नहीं सोचा था कि हम यहाँ तक आएंगे। लेकिन तुम्हारे साथ ये सफर आसान लगने लगा। क्या तुम मेरी ज़िंदगी की साथी बनोगी?”

साक्षी की आँखों में आँसू आ गए। उसने मुस्कुरा कर कहा, “हम दोनों का सपना एक था, रास्ता एक था, और अब मंज़िल भी एक होगी। हाँ, अर्जुन, मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ।”

वापसी और परिवर्तन

दोनों ने अमेरिका से अपनी मास्टर्स पूरी की और भारत लौट आए। गोरखपुर में उन्होंने अपना एक एजुकेशन हब खोला, जहाँ ग्रामीण बच्चों को मुफ्त कोडिंग और भाषा की शिक्षा दी जाती थी।

उनकी शादी गाँव में ही हुई, पूरी भारतीय परंपराओं के साथ। आज भी गाँव के लोग कहते हैं, “हमारे अर्जुन और साक्षी अमेरिका गए थे, लेकिन दिल आज भी यहीं है।”

समापन

अर्जुन और साक्षी की कहानी यह बताती है कि सपने बड़े हों तो ज़रूरी नहीं कि रास्ता आसान हो, लेकिन साथ सही हो तो हर मंज़िल मिलती है। उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाँव से अमेरिका तक का सफर — दो दोस्तों ने तय किया, जिन्होंने पहले दोस्ती की, फिर प्रेम किया, और फिर समाज के लिए कुछ किया।

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